क्या हमें सच में खाने की जरूरत है, या यह सिर्फ एक भ्रम है?
हम सब यह मानते आए हैं कि खाना हमें ऊर्जा देता है, पोषण देता है, और हमें जिंदा रखता है। लेकिन क्या यह सच में ऐसा है, या सिर्फ एक ब्रह्म (Hypnosis) है, जिसे हमें मानने के लिए बाध्य किया गया है? यह सवाल जितना अजीब लग सकता है, उतना ही गहरा भी है। आइए इस पर विचार करें।
क्या खाना वास्तव में ऊर्जा देता है?
लोगों का यह मानना है कि खाना खाने से हमें ऊर्जा मिलती है, लेकिन ऊर्जा का असली स्रोत क्या है? क्या केवल भोजन ही वह तत्व है जो हमें जीवित रखता है, या इसके पीछे कोई और रहस्य छिपा है?
विज्ञान भी यह मानता है कि भोजन शरीर के लिए आवश्यक है, लेकिन आध्यात्मिक स्तर पर कई साधकों और योगियों ने यह साबित किया है कि बिना भोजन के भी शरीर लंबे समय तक जीवित रह सकता है। कुछ साधु केवल प्राणायाम और सूर्य ऊर्जा से जीवित रहते हैं। तो फिर यह खाना ऊर्जा देने वाला विचार कहाँ से आया?
क्या खाना हमें पोषण देता है?
एक और भ्रांति यह है कि भोजन हमें पोषण देता है। लेकिन क्या वास्तव में पोषण भोजन से आता है, या फिर हमारी चेतना और मानसिक स्थिति से?
- यदि हम किसी भय और चिंता के साथ खाना खाते हैं, तो वह शरीर में जहर का काम करता है।
- यदि हम किसी आनंद और संतोष की स्थिति में खाना खाते हैं, तो वही भोजन अमृत बन जाता है।
तो क्या यह कहना सही होगा कि असल में भोजन नहीं, हमारा मन और विश्वास ही असली पोषण का स्रोत है?
क्या हम भोजन के कारण जिंदा हैं?
बहुत से लोग मानते हैं कि हम इसलिए जीवित हैं क्योंकि हम खाते हैं। लेकिन क्या यह सच है?
अगर ऐसा होता, तो बिना भोजन के कुछ दिन में ही कोई भी मर जाता। लेकिन कई संत और साधक महीनों या सालों तक बिना भोजन के ध्यान में लीन रहते हैं। वे जीवित रहते हैं, लेकिन भोजन के बिना।
तो फिर हमें यह विचार कहाँ से मिला कि हम भोजन के बिना जीवित नहीं रह सकते?
हिप्नोसिस (भ्रम) की दुनिया में हम सब बंदी हैं
यह पूरा संसार एक हिप्नोसिस की तरह काम करता है। हमें बचपन से ही यह सिखाया गया कि:
- हमें भोजन करना चाहिए।
- भोजन हमें ताकत देता है।
- बिना भोजन के हम मर जाएंगे।
लेकिन क्या यह सत्य है, या सिर्फ एक मान्यता (Belief)?
यदि हम अपनी सोच और चेतना को बदल दें, तो क्या हम बिना भोजन के भी जीवित रह सकते हैं?
हमारे विश्वास ही हमारी दुनिया बनाते हैं
अगर किसी व्यक्ति का विश्वास बहुत मजबूत हो, तो कोई भी बाहरी विचार उसे प्रभावित नहीं कर सकता। लेकिन यदि किसी का विश्वास कमजोर हो, तो वह किसी की भी बात से डर सकता है।
अंधविश्वास और सच्चा विश्वास
- सच्चा विश्वास: जिसे कोई तोड़ न सके।
- अंधविश्वास: जिसे दो शब्द कहने से ही तोड़ा जा सके।
अगर हमारी धारणा इतनी कमजोर है कि कोई व्यक्ति दो शब्द बोलकर उसे तोड़ सकता है, तो फिर वह विश्वास असल में विश्वास नहीं, बल्कि अंधविश्वास है।
क्या नकारात्मकता से बचना संभव है?
लोग कहते हैं कि हमें नकारात्मकता से दूर रहना चाहिए, लेकिन क्या यह वास्तव में संभव है?
सच तो यह है कि यह संसार ही द्वैत (Duality) पर आधारित है – जहाँ सकारात्मकता है, वहाँ नकारात्मकता भी होगी।
लेकिन एक महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारे विचार और चेतना यह तय करती है कि हम किस तरफ बढ़ेंगे।
- अगर हम अपने विचारों पर नियंत्रण पा लें, तो हम नकारात्मकता से ऊपर उठ सकते हैं।
- लेकिन अगर हम अपने विचारों को नियंत्रित नहीं कर पाते, तो हम इस भ्रम (Hypnosis) में उलझे रहेंगे।
निष्कर्ष: क्या हमें सच में खाने की जरूरत है?
शायद नहीं!
अगर हम अपनी चेतना को ऊँचा कर लें, तो शरीर भोजन से अधिक महत्वपूर्ण ऊर्जा स्रोतों से भी जीवित रह सकता है।
सवाल यह नहीं है कि हमें खाना चाहिए या नहीं, बल्कि सवाल यह है कि:
"हम क्यों मानते हैं कि हमें खाना चाहिए?"
अगर हम इस प्रश्न का उत्तर खोज लें, तो हम इस भ्रम से बाहर निकल सकते हैं और एक अधिक उच्च चेतना के स्तर पर जी सकते हैं।