परमात्मा कौन है? भगवान से कैसे अलग है? आत्मा की सच्चाई और मोक्ष का रहस्य | Brahm Gyaan Simplified
आज हम मंदिर जाते हैं, पूजा करते हैं, व्रत रखते हैं और हर बार एक ही कामना करते हैं —
"हे भगवान, मेरा दुख दूर कर दो।"
लेकिन क्या कभी आपने ये सोचा है कि जिससे हम माँग रहे हैं, वो भगवान है या परमात्मा?
क्या ये दोनों एक ही हैं?
या कुछ अलग?
चलिए आज इस लेख में इसे साधारण भाषा में समझते हैं।
1. शरीर किसने बनाया?
हमारा यह शरीर — हड्डियाँ, माँस, रक्त, नाड़ी तंत्र, मस्तिष्क — यह सब किसने बनाया?
भगवान ने।
यह सारा सिस्टम, यानी प्रकृति का संचालन करने वाला जो 'मायावी सिस्टम' है, वह भगवान (यानी उनका प्रतिनिधि, उनका बेटा) चला रहा है।
उदाहरण के लिए जैसे कोई इंजीनियर मशीन बनाता है, वैसे ही भगवान ने ये शरीर रूपी मशीन बनाई।
2. आत्मा कहाँ से आई?
अब सवाल आता है — इस शरीर के अंदर जो "मैं हूँ," जो सब कुछ देख रहा है, महसूस कर रहा है —
वो आत्मा कहाँ से आई?
आत्मा परमात्मा से आई है।
वो अनंत चेतना, जो शरीर बदलती है, जन्म लेती है, मरती नहीं — वो आत्मा परमात्मा का अंश है।
यानी:
- शरीर = भगवान द्वारा निर्मित
- आत्मा = परमात्मा द्वारा दी गई
3. भगवान और परमात्मा में क्या अंतर है?
अब इस अंतर को एक सरल उदाहरण से समझते हैं:
मान लीजिए एक राजा है और उसका बेटा है — वो बेटा पूरे राज्य का प्रशासन चला रहा है।
लोग उसी से मदद माँगते हैं — रास्ते, पानी, सुरक्षा।
लेकिन वास्तविक राजा तो वो है जिसने उसे यह अधिकार दिया है।
ठीक वैसे ही:
- भगवान = परमात्मा का बेटा (जो ये सिस्टम चला रहा है)
- परमात्मा = वो मूल सत्ता, जो आत्मा को जन्म देती है और मोक्ष भी वही दे सकता है
4. आत्मा कहाँ-कहाँ घूम रही है?
अब ध्यान दीजिए — यह आत्मा पिछले 10,000 वर्षों से
कभी मनुष्य, कभी पशु, कभी पक्षी, कभी कीट-पतंग बनकर जन्म ले रही है।
क्यों?
क्योंकि इसे अपने कर्मों का फल भोगना होता है — और यह चक्र तब तक चलता है जब तक आत्मा मुक्त नहीं हो जाती।
5. क्या भगवान हमें मोक्ष दे सकते हैं?
नहीं।
भगवान हमें सुख-दुख दे सकते हैं, व्यवस्था चला सकते हैं, जीवन के साधन दे सकते हैं —
लेकिन मोक्ष, यानी पुनर्जन्म से मुक्ति, केवल परमात्मा ही दे सकते हैं।
क्यों?
क्योंकि आत्मा उन्हीं की दी हुई है — और वापसी भी उन्हीं तक होगी।
6. तो परमात्मा क्या कहते हैं?
परमात्मा कहते हैं:
“तुम मेरे पास सिर्फ दुख दूर करने मत आओ,
मैं तुम्हें वहाँ ले जाना चाहता हूँ जहाँ दुःख पैदा ही नहीं होता।”
यानी —
- “मैं चमत्कार नहीं, स्थायी समाधान दूँगा।”
- “मैं बीमारी नहीं हटाऊँगा, बीमारी की जड़ ही खत्म कर दूँगा।”
- “मैं तुम्हारा दुःख नहीं मिटाऊँगा, बल्कि ऐसा ज्ञान दूँगा कि दुःख टिके ही नहीं।”
7. अब सवाल है: हम क्या चाहते हैं?
हम सालों से सिर्फ यही माँगते आए हैं —
- नौकरी मिल जाए
- बीमारी ठीक हो जाए
- घर बस जाए
- व्यापार चले
लेकिन सवाल ये है — क्या हम सिर्फ दुनिया चाहते हैं या परमात्मा भी?
8. समाधान कहाँ है?
इस पूरे अनुभव का सार, जो प्रदीप मुखर्जी जी जैसे साधक ने बताया, ये है:
"अगर आप वाकई पुनर्जन्म से मुक्ति चाहते हैं,
अगर आप सच में परमात्मा तक पहुँचना चाहते हैं —
तो आपको भगवान से ऊपर उठकर परमात्मा को जानना होगा।"
यही सच्चा मोक्ष है। हमें दिशा बदलनी है।
अब समय आ गया है कि हम सिर्फ भगवान से चमत्कार माँगने की जगह परमात्मा से मिलने की यात्रा शुरू करें।
क्योंकि:
- शरीर तो खत्म हो जाएगा
- लेकिन आत्मा को अभी बहुत कुछ तय करना है
और वो सफ़र, परमात्मा के पास जाकर ही पूरा होगा।
पांच चीज़ें जो इस संदेश में परमात्मा के द्वारा बताई गई हैं:
1. पापों से मुक्ति – तुम्हारे किए गए जन्मों-जन्मों के पाप काटे जाएंगे।
2. कर्मों से मुक्ति – जो कर्मबंधन है, जिससे तुम बार-बार जन्म लेते हो, उससे मुक्ति।
3. इस जीवन को अंतिम जीवन बनाना – यानी तुम बार-बार इस जन्म-मरण के चक्र में नहीं फँसोगे।
4. परमशांति की अनुभूति – वो आंतरिक स्थायित्व जो दुनियावी किसी वस्तु से नहीं मिलता।
5. परमात्मा से साक्षात्कार – अंत में, जो तुम खोज रहे हो हर मंदिर, हर मज़ार, हर शास्त्र में, उसका साक्षात् मिलन।
अब यहाँ एक महत्वपूर्ण बात कही जा रही है —
कि परमात्मा इंसानों को इसीलिए नहीं दे रहे क्योंकि उनका बेटा, यानी ये जो भगवान लोग कहे जा रहे हैं (जो system चला रहे हैं – धर्म, कर्म, पुनर्जन्म आदि के नाम पर), उनके साथ इंसान खुद जुड़ना चाहता है।
यानि इंसान चमत्कार चाहता है, छुटकारा चाहता है, पर सत्य नहीं।
परमात्मा कह रहे हैं:
> “तुम मेरे पास मत आओ, अगर तुम सिर्फ अपना दुःख हटाने आए हो। मैं तुम्हारे दुःख नहीं मिटाऊँगा, मैं तुम्हें उस अवस्था में ले जाऊँगा जहाँ दुःख की उत्पत्ति ही नहीं होती।”
यह दर्दनाक भी है और जाग्रत भी।
क्योंकि इंसान जो सालों से मानता आ रहा है – मंदिर में जाकर माँगना, गुरु के पास जाकर उपाय लेना, व्रत करना, दान देना – ये सब अंत में temporary relief देता है, लेकिन root level पर कुछ नहीं बदलता।
यहाँ जो प्रदीप मुखर्जी जी की पुस्तक या अनुभव में बताया गया है
आप क्या कर सकते हैं?
-
इस पोस्ट को पढ़कर अगर आपके अंदर कुछ हिला है —
तो उसे अनदेखा मत कीजिए। -
चाहें तो इस बात को दूसरों से भी बाँटिए —
क्योंकि हो सकता है कोई आपकी तरह इसी सत्य की खोज में हो।